भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डालर / पवन करण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:20, 28 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन करण |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> दुनिय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया के हर हिस्से को नोच रही है
इसकी गिद्ध-दृष्टि
भरभरा कर ढह चुकी अनेक जन-इमारतों के
बुरी तरह ध्वस्त-अंश

इसकी घटती-बढ़ती संख्याओं के समुद्र में
लगातार रहे हें डूब
दूर-दराज हिस्सों से मेहनत के बाद कड़ी
खोजकर निकाली गई विशिष्टताएँ

स्वीकारने के बाद इसका नियंत्रण
ख़ुद पर खोती जा रही हैं नियंत्रण अपना
हथियारों और हत्याओं से पटी पड़ी धरती
जाल में फँसकर इसके किसी चिड़िया की तरह

फड़फड़ा रही है अपने सुंदर पंख
धुरी पर घूमती पृथ्वी की जगह
घूमने की इसकी इच्छा
इसकी आँखों में साफ़-साफ़ जा सकती है देखी