भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ताला / पवन करण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:37, 28 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन करण |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> विश्व...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विश्वास से भी पक्की
जो भरोसेमंद चीज़ें
हमारे पास मौज़ूद हैं
यह उनमें से एक है

हमारे माल-असबाब पर
सदियों से तैनात
एक मुस्तैद लौह-प्रहरी
भले ही इसे हमने

बाहर दरवाज़े पर लगा रखा हो
मगर यह जानता है
बुरे समय के लिए अपने भीतर
किस घर ने

कितनी धातु
कितना धन
बचाकर रखा है
किस घर की तिजोरियाँ

सपनों से लबालब हैं
किस घर में
सिवा उम्मीदों के कुछ नहीं
दूसरों के सुख

किस-किसने
अपने नाम चढ़ा रखे हैं
अपने षड्यंत्र छुपाने में
कौन-कौन
उसका इस्तेमाल

कर रहा है
यह सब जानता है
और न चाहते हुए भी
सब सुरक्षित रखता है

यह राजदार हमारा
अनुपस्थिति में हमारी
कभी झुकता नहीं
टूट भले जाए ।