ओ ! मेरे घर ! / विमल राजस्थानी
ओ ! मेरे घर !
ओ ! सबके घर !
नहीं मृत्यु का तुमको है डर
ओ ! मेरे घर !
तने हुए हो
भिन्न-भिन्न रूपों-आकारों में मिट्टी से बने हुए हो
धीरे-धीरे बड़े हुए हो
रोपे पाँव धरा में गुमसुम तुम वर्षो से खड़े हुए हो
गली-मुहल्लों की अँगूठियो में तुम नग-सा जड़े हुए हो
भिन्न-भिन्न रंगों-डिजाइनों में गर्वोन्नत अड़े हुए हो
ओ ! मेरे घर !
ओ ! सबके घर !
तुमको देख डाह होती है
पीड़ा बेपनाह होती है
भीतर-भीतर ‘घर’ बन जाने की प्रच्छन्न चाह होती है
तुम-सा ही बन जाने का मन क्यों होता है ?
तुम-सा ही तन जाने का मन क्यों होता है ?
ओ ! मेरे घर !
बोल-बोल तू तनिक भी न डर
ओ ! मेरे घर !
बहुत दिनों से चला आ रहा है यह चिन्तन
जब भी तुम्हें देखता, घायल हो जाता मन
तुमको वाणी कहाँ, भला तुम क्या बोलोगे ?
बिना हुए भूकम्प, भला तुम क्यों डोलोगे ?
ओ ! मेरे घर !
ओ ! सबके घर !
हम आते है: हम जाते हैं
पुनः लौट जब-जब आते हैं
तुमको पहले-सा पाते हैं
तुम ज्यों के त्यों देखा करते आना-जाना
शव जाते है: नव आते हैं
सुनते रोना: सुनते गाना
अपने फूलों सजे कक्ष में -
मसृण गुदगुदी लिये वक्ष में
नवदम्पति की मीठी, हल्की
सिसकारियाँ सुना करते हो
ताक-झाँक खिड़की-फाँकों से
अनब्याही जवान ननदों-सा अपना सिर न धुना करते हो
ओ ! मेरे घर !
ओ ! सबके घर !
हम नश्वर है, तुम भी न अनश्वर
किन्तु, कई पीढि़याँ जन्म लेतीं, मरती हैं
मूक भाव से तुम सबके साक्षी रहते हो
नहीं देखने को हम रहते, तुम रहते हो
इसीलीए तो हम तुमसे ईष्र्या करते हैं
तुम्हें देख आहें भरते हैं
पैठ हृदय में तुम्हें सतृष्ण दृष्टि से हम ताका करते हैं
ओ ! मेरे घर !
ओ ! सबके घर !
नहीं मृत्यु का तुमको है डर
एक बार वर्ष में रोते
एक बार वर्ष में हँसते
दुख में, सुख में हम-सा नहीं सदा तुम फँसते
ओ ! मेरे घर !
ओ ! सबके घर !
मौसम सचमुच है बेदर्दी
होती है तुमको भी सर्दी
झटपट तुम्हीं इलाज करा लेते हो हम से मर्दामर्दी
हम-सा तुम ‘अपहृत’ कब होते
नहीं ‘फिरौती’ का दुख ढोते
‘गोली’ हमें मृत्यु देती है
पर तुम झेल चैन से सोते
राग-द्वेष तुमको न व्यापता
तुम हो सकते नहीं लापता
तुनुकमिजाजी में खिसियाकर
नहीं भटकते हो तुम दर-दर
ओ ! मेरे घर !
ओ ! सबके घर !
क्रोध भरे, दृग में आँसू भर
ओ ! मेरे घर !
शिशु की किलकारी, गृहपति का गर्जन-तर्जन
सास-बहू के झगड़ों के स्वर, ताण्डव-नर्तन
देखा करते शांत भाव से टुकुर-टुकुर तुम
नहीं तुम्हें होती है खुशी, न होता है गम
दुखी, तिरस्कृत बूढ़ो का खों-खों-खस् करना
जीन्स कसे जोड़ो का दुहरे हो-हो हँसना
बेमौसम, बेवजह बरसना
झिमिर-झिमिर-झिम, झर-झर-झर-झर
ओ ! मेरे घर !
ओ ! सबके घर !