भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पँखुरी विहीन हुई फूल सी उमरिया / विमल राजस्थानी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:15, 20 नवम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमल राजस्थानी |संग्रह=लहरों के च...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पंखुरी विहीन हुई फूल-सी उमरिया
कमर झुकी ढोते-ढोते दर्द की गठरिया

चूल्हे ने ईंधन का परस नहीं पाया
तवा बर्फ बना, हुई ठठरी-सी काया
अँसुवन से भीग गयी चाँद-सी चदरिया
पंखुरी विहीन हुई फूल-सी उमरिया

नये-नये नोटों का खिर-खिर कल कूजन
गद्दी का नाग सुने उर में भर पुलकन
पैसों के बिना करूँ कलम की घिसाई
कभी-कभी भूखे पेट उमड़े उबकाई
होगी कब रामजी के यहाँ भरपाई
राँड बनी गौने के पूर्व ही बहुरिया
पंखुरी विहीन हुई फूल-सी उमरिया।