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पँखुरी विहीन हुई फूल सी उमरिया / विमल राजस्थानी
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पंखुरी विहीन हुई फूल-सी उमरिया
कमर झुकी ढोते-ढोते दर्द की गठरिया
चूल्हे ने ईंधन का परस नहीं पाया
तवा बर्फ बना, हुई ठठरी-सी काया
अँसुवन से भीग गयी चाँद-सी चदरिया
पंखुरी विहीन हुई फूल-सी उमरिया
नये-नये नोटों का खिर-खिर कल कूजन
गद्दी का नाग सुने उर में भर पुलकन
पैसों के बिना करूँ कलम की घिसाई
कभी-कभी भूखे पेट उमड़े उबकाई
होगी कब रामजी के यहाँ भरपाई
राँड बनी गौने के पूर्व ही बहुरिया
पंखुरी विहीन हुई फूल-सी उमरिया।