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रात में चाँदनी पी रहे हैं / विमल राजस्थानी

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हम तो सागर से गोमुख के राही
धार को मोड़ कर हम बहे हैं
शायरी का ही दमखम है जिसने
राज़ खोले हैं जो अनकहे हैं

मौसमों का उठाया है घूँघट
चाँद-सूरज के तेवर सहे हैं
मौत के हाथ तो जिस्म आये
(हम) हरूफों में जिन्दा रहे हैं

शायरी तो खुदा की एनायत
उसके दम पर ही हम जी रहे हैं
दिन में आँसू पिये तो हुआ क्या
रात में चाँदनी पी रहे हैं

हम न जिंदा उमर की बदौलत
हमसफर ‘रूह के कहकहे’ हैं
नाज़ उनको अमरता पै होगा
हम तो हँसकर कफन सी रहे हैं

कुछ लकडि़याँ न होंगी बला से
हम तो मिट्टी के प्रेमी रहे हैं
जब ज़नाज़ा उठेगा हमारा
मौत चैंकेगी-हम जी रहे हैं
‘चार’ में ‘फख़’ भी एक होगा
‘उनके’ आशिक तो हम भी रहे हैं
यह मज़ा लेके होंगे विदा हम
श्याम-अधरों की वंशी रहे हैं