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बोले स्वर में जग की पीड़ा / विमल राजस्थानी

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देखो मत केवल हरियाली, रजनी झिलमिल तारों वाली
कुछ ऐसे गीत रचो साथी ! जिनमें जग का जीवन बोले
तितलियाँ, फूल, कलियाँ, भौंरै,
झुरमुट, नभ नील, विपिन, उपवन
तारे, रवि, शशि, जुगनू, बादल,
कोयल, बुलबुल, झरने, मधुवन
चर्चा इनकी काफी हो ली, अब तो बोलो अपनी बोली
बोले स्वर में जग की पीड़ा, इन आँखों का सावन बोले
ये महल, अटारी, चैबारे
इनमें रहते जो सुखियारे
वे क्या जानें इनकी नीवों-
मे गड़े अनेकों दुखियारे
इन भग्न कुटीरों को देखो, जालिम जंजीरों को देखो
कवि ! तेरी वाणी में फिर से बिफरा सन् सत्तावन बोले
तेरे गीतों में अब तक कवि !
आँसू की चर्चा हुई नहीं
तुमने दुनिया की दुखती रग-
स्वर-कर से अब तक छुपी नहीं
आँसू की झीलों में डूबो, इन रस-चर्चाओं से ऊबो
जीवन का दर्द बजे स्वर में, दुखते दिन की धड़कन बोले