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बेटा / विमल राजस्थानी

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बूढ़े मा-बाप लौटे मकतब में
सब्र का इम्तहान होता है
कड़वे लफजों की मार सहते हैं
करवटों में विहान होता है

खून के कतरों से गारा साना
तब कहीं बन सका दौलतखाना
नाम पर कर दिया जो बेटों के
उठ गया तब से ही पानी-दाना

भूल जाता है मा के आँचल का
जिसके निचे जवान होता है
बुढ़ापा ज़ार-ज़ार रोता है
जिंदा ही ला-मकान होता है

एक बेटा ही है ज़माने में
जिसको आकाश तक उठाने में
बाप ने अपने को गला डाला
बड़ी उम्मीद से पोसा-पाला

पर यह हालत है अब बुढ़ापे में
जवानी खोजता, झुककर कमान होता है
अपने हाथों चिनी इमारत पर
जलन होती नहीं, गुमान होता है

भले ही बाप के लिए न चंद सिक्के हों
उसके हिस्से में फकत ना-नुकुर के रूक्के हों
अपनी मुमताज के लिए कमबख्त
हीरे-पन्नों की खान होता है
खुद तो सोता है खोलकर ए.सी.
खाँसते बाप की खातिर बथान होता है