भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाँदनी / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:29, 24 नवम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमल राजस्थानी |संग्रह=फूल और अंग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
विश्व के रोम-रोम में रमी मधुर चाँदनी दूध से धुली
1
आ रही शीतल, मधुर बयार
भान होता सुर-पुर संसार
अंक में प्रिय के लेटी प्रिया
मौन ज्यों रति-नूपूर-झंकार
2
खोल काले घुँघराले बाल
झूलती कोई झूला डाल
सनम को बाँहों में भर विहँस-
हो रही कोई मस्त, निहाल
मुग्ध कोई निहारती इन्द्र-प्रिया-बदली की अलकें खुली
विश्व के रोम-रोम में रमी मधुर चाँदनी दूध से धुली
3
चन्द्रमा चमक रहा द्युतिमान
विश्व सोया छवि-चादर तान
विरहिणी के उर में चुभ रहे
किरण के बाण, अग्नि के बाण
4
आ रही ‘कूहू’ की आवाज
गिर रही विरहिनियों पर गाज
पोंछतीं कह आँचल से अश्रु-
‘निकट यदि होते प्रीतम आज’
‘आह ! सूनी सुमनों की सेज, चाँदनी विष बन मन में घुली’
विश्व के रोम-रोम में रमी मधुर चाँदनी दूध से धुली