रामावतार की मूल कथा / शिवदीन राम जोशी
श्री गुरु चरण पखारिहूँ उर में प्रेम बढ़ाय |
पूज्य गणपति नमन हूँ, शिव शारद पुनि ध्याय ||
श्री सुमेरुदास जी संत को बंदऊँ बारंबार |
समरथ सिद्ध सुहावने ईश्वर के अवतार ||
अक्षर दो कोऊ प्रेम से राम नाम ले जान |
मूल मन्त्र ये ही सुनहु गावें वेद-पुराण ||
कथा रामावतार की वर्णन करूं विचार |
ता सुन के प्राणी सकल होवे भाव से पार ||
नृप खट्वांग के वंश में थे जो दशरथ भूप |
तेजवान धर्मज्ञ अरु सब गुण रूप अनूप ||
अयोध्या पुरी सुहावनी तहँ जन्मे श्रीराम |
दशरथ सुत हो अवतरे परब्रह्म सुख धाम ||
शेषावतार लक्ष्मण जी का उन सहित राम रघुनायक थे,
ऋषि विश्वामित्र के संग वो ही तो यज्ञ सहायक थे |
मारीच सुबाहु को मारा भगवन राम ने बचपन में,
मख की रखवारी करी वहां विकत भयंकर कानन में |
श्री गुरु के साथ जनकपुर में जाकर शिव-धनु खंडन कीना,
क्षण में धनु तोरी वरी सीता परशुराम मद मर्दन कीना |
आज्ञा पितु की प्रभु शीश धरी तनिक न चित्त उदास किया,
श्री राम लखन सीताजी ने दस चार बरष बनवास लिया |
पंचवटी में आय प्रभु ने पर्ण कुटी में वास किया |
सुर्पणखां का नाक काट असुरी के मद का नाश किया ||
खरदूषण त्रिसिरा आ पहुंचे सेना असुरों की साथ लिये |
पल में संहार अरि दल को धनुष बाण प्रभु हाथ लिये ||
यह समाचार सुन रावन ने कपटी योगी का वेष किया |
मारीच को मारण गये राम पीछे से छल कर हरी सिया ||
मारग में गीध जटायु ने लंकापती को ललकार दिया |
संग्राम हुआ अतिशय भारी रावन ने गीध परास्त किया ||
सागर पार पुरी लंका हर लाया रावन सीता को |
अशोक वाटिका में रक्खा जग जननी परम पुनीता को ||
माया के मृग को मार शीघ्र राम वापस आये |
कुटिया प्रभु ने सूनी देखी प्रिय सीताजी न वहां पाये ||
नर तन धारण करने से स्वामी ने बिलख विलाप किया |
चले सिया संधान प्रभु मारग में गीध मिलाप किया ||
कहा जटायु ने प्रभु से रावन ने सीता हरण किया |
परम भक्त प्रिय जान उसे रघुवर ने आपनी शरण लिया ||
संस्कार सब कर प्रभु ने गीध को भव से तारा है,
पुनि आगे जाकर रघुबर ने कबन्ध राक्षस मारा है |
सुग्रीव संग मित्रता की सब तरह उसे सुख साज दिया,
मारा बाली निज मित्र हेतु अरू किस्कंधा का राज दिया |
सीताजी की सुधी लेने को कपि भालू चतुर्दिक फ़ैल गये,
हनुमान वीर गये लंका में राक्षस गण कपि से दहल गये |
जाकर के सीता सुधी लीनी लंका में आग लगा दीनी,
जितने वहां राक्षस योद्धा थे सबकी शक्ति हनु हर लीनी |
कुशलानंद सीता की कही कपि सुत ने प्रभु से आकर,
लंका पर शीघ्र चढ़ाई की श्रीराम ने कपि भालू लेकर |
नल-नील आदि योद्धाओं को प्रभु ने आदेश सुनाया है,
पार किनारे जाने को वारिद पर सेतु बंधाया है |
भ्रात विभीषण रावण का रघुवीर की शरण में आया है,
लंका का राज दिया उसको निज हाथ से तिलक लगाया है |
उसी सेतु की राह राम ने लंका को घेर लिया जाकर,
कपि भालू शस्त्र सजीले थे श्री राम कृपा का बल पाकर |
लक्ष्मण अरु सुग्रीव कपि हनुमान होय क्रुद्ध |
अंगदादि नल-नील सब कर करने लगे महायुद्ध ||
महा बलि योद्धाओं ने अति घोर विकट संग्राम किया |
राक्षस केते मार-मार वीरों ने अपना नाम किया ||
इन्द्रजीत अरु कुम्भकरण रण सन्मुख जाय लडाई की |
पुनि इनके मारे जाने पर रावन ने स्वयं चढ़ाई की ||
श्री रामचंद्र ने रावन के हृदय में अग्नि बाण दिया |
अंत समय श्रीराम नाम ले रावन ने अपना प्राण दिया ||
उसे मुक्ति पद दे प्रभु ने दिना राज विभीषण को |
सिंहासन पर बैठाय उसे पाला प्रभु ने अपने प्रण को ||
सुखपाल में सीताजी को ले जब भक्त विभीषण आता था |
भालू वानर सबका ही मन तब दर्शन को ललचाता था ||
रघुनायक अन्तर्यामी ने उन सबके मन को जान लिया |
सबके दर्शन हित पदगामी सीताजी का आव्हान किया ||
श्रीराम चरण गहे सिया ने प्रभु मिले सिया से हर्षाकर |
बानर भालू सब सुखी हुये सीताजी के दर्शन पाकर ||