तुम्हें मैं निहारा करूँ / विमल राजस्थानी
तुम हो मेरे खुदा, तुम ही भगवान हो
देखने में भले एक इंसान हो
तुम को इस नाम से या कि उस नाम से
बोलो, किस नाम से मैं पुकारा करूँ ?
क्यों बनी हैं ये पलकें कोई दे बता
जो बराबर उठें, जो बराबर गिरें
जिनने जाना नहीं इश्क की आग को
भावना-शून्य ब्रह्मा भी हैं सिरफिरे
चाहता हूँ न बाधक बनें ये मुई
एकटक बस तुम्हें मैं निहारा करूँ
तुमको इस नाम से याकि उस नाम से
बोलो, किस नाम से मैं पुकारा करूँ
प्यार की झील की ये जो गहराइयाँ
जानें क्या जो किनारों पै ठहरे हुए
धड़कनें दो दिलों की न सुन पायेंगे
हो जो जज्बात से दूर, बहरे हुए
इश्क करना अगर भूल दुनिया कहे
भूल यह मैं दुबारा-तिबारा करूँ
तुमको इस नाम से याकि उस नाम से
बोलो किस नाम से मैं पुकारा करूँ
चाहता हूँ-न बाधा बनें ये पलक
एकटक बस तुम्हें मैं निहारा करूँ।