भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नज़्र मैं क्या करूँ नाज़िर मेरे / द्विजेन्द्र 'द्विज'

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:19, 28 नवम्बर 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नज़्र<ref>भेंट</ref> मैं क्या करूँ नाज़िर<ref>दर्शक</ref>मेरे
ज़ख्म इतने नहीं नादिर<ref>अद्भुत;अनूठा</ref> मेरे

बेशक अल्फ़ाज़<ref>शब्द</ref> हैं फ़ाकिर<ref> फ़कीर का बहुवचन, सन्यासी, दरवेश,</ref> मेरे
जान-ओ-दिल अब भी हैं काफ़िर<ref>ईश्वर की दी हुई नेमतों पर कृतज्ञता प्रकट न करने वाला</ref>मेरे

चुप रहे गर्चे<ref>यद्यपि</ref> मुक़र्रिर<ref>वक्ता</ref> मेरे
बोल उठ्ठेंगे मक़ाबिर<ref>क़ब्रें: मक़बरे का बहुवचन</ref>मेरे

तेरी नज़रों से भला क्या पर्दा
ज़ख़्म ग़ायब हैं बज़ाहिर<ref> प्रत्यक्षतय: </ref>मेरे

वो न होता तो न होता कुछ भी
मस्जिदें तेरी न मंदिर मेरे

इन पे कोई नहीं आने वाला
अश्क मेरे हैं जज़ाइर मेरे<ref> द्वीप ; जज़ीरा का बहुवचन </ref>

ख़ाक तो डाल ही देंगे मुझपर
काम कब आएँगे आख़िर मेरे

अब सिला मैं वफ़ा का क्या ढूँढूँ
हैं मुआशिर<ref>मित्र</ref> भी तो मुन्क़िर<ref>कृतघ्न</ref> मेरे

मुझको इक रंग तो देता अपना
मेरे मौला ओ मुसव्विर<ref>चितेरा, चित्रकार</ref> मेरे

मैंने पाए जो तेरी फ़ुर्क़त<ref>विरह</ref> में
दर्द मेरे वो हैं फ़ाख़िर<ref>बहुमूल्य वस्तुएँ</ref>मेरे

मैंने जितने भी तराशे अब तक
संग वो हो गए कासिर<ref>तोड़ने वाले; भंजक</ref> मेरे

बन्द पिंजरे में सजाकर मुझको
मेरे क़ाइल <ref>लाजवाब,निरुत्तर, प्रशंसक</ref> हुए साहिर <ref>जादूगर</ref> मेरे

इक तसव्वुर<ref>कल्पना</ref> का है सूरज दिल में
जिनसे रौशन हैं अनासिर<ref>पंचतत्व; पंचभूत;आग,पानी,हवा,मिट्टी और आकाश</ref> मेरे

हादिसों में है तू ही इक हाफ़िज़<ref>रक्षक</ref>
और हवा में अभी ताइर<ref>पक्षी ;परिन्दे</ref>मेरे

ये सफ़ीना<ref>जहाज़;नौका</ref> तो मेरे अज़्म<ref>इरादा</ref>से है
गो हवाएँ हैं मुग़ाइर<ref>प्रतिकूल</ref> मेरे

एक मंज़र<ref>दृश्य</ref> वो तेरे जाने का
धो गया सारे मनाज़िर<ref> दृश्य का बहुवचन</ref> मेरे

मेरे अशआर<ref>शे’र का बहुवचन</ref>सुनाते हैं मुझे
अपने लफ़्ज़ों में मुआसिर<ref>समकालीन</ref> मेरे
 
तुझको छू लें तो ग़नीमत जानूँ
शे’र हो जाएँ मआसिर<ref>सुकृतियाँ; स्मृति चिन्ह</ref> मेरे

हूँ अनासिर<ref> पंचतत्व; पंचभूत;आग,पानी, हवा, मिट्टी और आकाश</ref> के हवाले जब तक
कैसे जज़्बात<ref>भावनाएँ</ref> हों ताहिर<ref>पवित्र;शुद्ध</ref>मेरे

मेरे अशआर<ref>शे’र का बहुवचन</ref> सुनाते हैं मुझे
अपने लफ़्ज़ों में मुआसिर<ref>समकालीन</ref> दृश्य मेरे

तुझको छू लें तो ग़नीमत जानूँ
शे’र हो जाएँ मआसिर<ref>सुकृतियाँ; स्मृति चिन्ह</ref> मेरे

हूँ अनासिर<ref>पंचतत्व; पंचभूत;आग,पानी,हवा, मिट्टी और आकाश</ref> के हवाले जब तक
कैसे जज़्बात<ref>भावनाएँ</ref>हों ताहिर<ref>पवित्र;शुद्ध</ref>मेरे

शे’र सारे ये कहे हैं `द्विज’ ने
तू तो ग़ायब रहा शाइर मेरे

 

शब्दार्थ
<references/>