भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्मृति-2 / गोविन्द माथुर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:45, 29 नवम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोविन्द माथुर }} {{KKCatKavita‎}} <poem> खड़ा हू...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खड़ा हूँ मैं
उस निर्जल स्थान पर
जहाँ कभी बहता था झरना
दूर तक सुनाई देती थी
जल की कल-कल

खड़ा हूँ मैं
उस निस्पंद स्थान पर
जहाँ हँसी बिखरते हुए
मिली थी साँवली लड़की

जल की कल-कल में
हँसी की खिल-खिल में
डूब गए थे मेरे शब्द
जो कहे थे मैंने
उस साँवली लड़की से

खड़ा हूँ मैं
उस निर्वाक स्थान पर
जहाँ मौन पड़े है मेरे शब्द

मेरे शब्द सुनने के लिए
न झरना है
न ही वह साँवली लड़की