अजहूँ चेति अचेत / सूरदास
राग धनाक्षरी
अजहूँ चेति अचेत
सबै दिन गए विषय के हेत।
तीनौं पन ऐसैं हीं खोए, केश भए सिर सेत॥
आँखिनि अंध, स्त्रवन नहिं सुनियत, थाके चरन समेत।
गंगा-जल तजि पियत कूप-जल, हरि-तजि पूजत प्रेत॥
मन-बच-क्रम जौ भजै स्याम कौं, चारि पदारथ देत।
ऐसौ प्रभू छाँडि़ क्यौं भटकै, अजहूँ चेति अचेत॥
राम नाम बिनु क्यौं छूटौगे, चंद गहैं ज्यौं केत।
सूरदास कछु खरच न लागत, राम नाम मुख लेत॥
यह पद सूर विनय पत्रिका से उद्धृत है। भवसागर से पार उतारने में तो रामनाम रूपी नौका ही एकमात्र सहारा है। उस पतित पावन नाम को ही विषय रस में डूब जाने से भुला दिया जाता है। सभी दिन (पूरी आयु) विषयों के लिये (विषय-सेवन में) ही बीत गये। तीनों (बाल्य, किशोर, तारुण्य) अवस्थाएँ ऐसे ही व्यतीत कर दीं और अब बाल सफेद हो गये बुढ़ापा आ गया। आँखों से अंधा हो गया, कानों से सुनायी नहीं पड़ता, पैरों सहित सभी अङ्ग शिथिल हो गये (कर्मेन्द्रियों की शक्ति भी जाती रही)। गङ्गाजल छोड़कर कुएँ का पानी पीता है और श्रीहरि को छोड़कर प्रेत (शरीर) की पूजा करता है। (इसके बदले) यदि मन, वाणी तथा कर्म से श्रीश्यामसुन्दर का भजन करे तो वे (अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष) चारों पदार्थ देते हैं। अरे मूर्ख! ऐसे प्रभु को छोड़कर (माया में) क्यों भटक रहा है? अब भी सावधान हो जा! राहुग्रस्त चन्द्रमा के समान रामनाम लिये बिना (संसार से) तू कैसे छूट सकता है? (यह पुराणों की कथा है कि भगवान् के चक्र के द्वारा डराये जाने पर ही राहु चन्द्रमा या सूर्य को छोड़ता है।) सूरदासजी कहते हैं कि मुख से रामनाम लेने में कुछ खर्च तो लगता नहीं, फिर भी क्यों नाम नहीं लेता?