भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अच्छा लगा / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:11, 5 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमल राजस्थानी |संग्रह=फूल और अंग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ओस से होना सरापा तर बतर
धूप झेले फूल को अच्छा लगा
आह भरना, डबडबाना आँख का
रास्ते के शूल को, अच्छा लगा
दोस्तों को मुस्कुराकर ताकना
भूल जाना भूल को, अच्छा लगा
पाँव से उठकर सिरों पर बैठकर
खिलखिलाना धूल को, अच्छा लगा
छाँह देना चिलचिलाती धूप में
बरगदों के मूल को अच्छा लगा
ठिठुरतों को बाँध कर आगोश में
ताप देना तूल को अच्छा लगा
बाढ़ की बर्बादियों को रोककर
ऊँचे उभरे कूल को अच्छा लगा
सीधे-सूधे मेमनों को लीलना
आधुनिक शार्दूल को अच्छा लगा