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संक्रमण के इस दौर में / संगीता गुप्ता
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संक्रमण के इस दौर में
बदल गये हैं रिश्तों के समीकरण
आस्था, विश्वास की बात करने पर
हिकारत से देखते हैं लोग
अर्थ खोये षब्द
चमत्कार भी पैदा नहीं करते
कोई नहीं करता
सपनों की बातें
थक गया है आदमी
अपने को बचाने में
आतंक के अंधेरे में
जरूरी है
जलाए रखना
उम्मीद की
एक नन्ही - सी कन्दील