भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा / मीराबाई

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:14, 9 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} राग भीमपलासी गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग भीमपलासी


गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा॥

चरण कंवल को हंस हंस देखूं, राखूं नैणां नेरा।
निरखणकूं मोहि चाव घणेरो, कब देखूं मुख तेरा॥

व्याकुल प्राण धरत नहिं धीरज, मिल तूं मीत सबेरा।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा॥


शब्दार्थ :- नैणा नेरा = आंखों के निकट। चाव = चाह। घणेरो =बहुत अधिक। सवेरा = जल्दी ही।