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एक अरसे से मेरे / संगीता गुप्ता
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एक अरसे से मेरे
तटस्थ, असम्पृक्त मानस को
सुख-दुख
नहीं छूते थे
अचानक
ऐसे में
किसी की व्यथा
अकुलाहट से भर देगी मुझे
मेरा रेशा - रेशा वजूद
यूं तड़पने लगेगा
नहीं जानती थी
सोच भी नहीं सकती थी
इस एहसास से
घबरा गयी हूँ
इससे उबरने का भी
जी नहीं करता मगर
एक अनाम, अदृश्य
शक्ति ने
खींच कर मुझे
पहुँचा दिया है
तुम तक
इस रिश्ते को
क्या नाम दूं ?
शायद यह
इस जन्म से
पहले भी था