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यह कैसी पुलक है / संगीता गुप्ता

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यह कैसी पुलक है
कैसा अद्भुत उल्लास
लगता है मानों
उगते सूरज की
असंख्य किरणों के
स्निग्ध, निर्मल पुंज ने
अपनी अनन्त बाहों में
मुझे घेर लिया है

अन्दर उठता शाश्वत हाहाकार
न जाने कहाँ तिरोहित हो गया
मन का ज्वालामुखी फूटा तो
सारी तिक्तता, अपमान और दुख
बहा ले गया
उसके उद्दाम ज्वार में
सब शेष हो गया
अतीत की कड़वाहट
भविष्य का भय
सब कुछ खो कर
जो पाया है
सुन्दर, मधुर है
वर्तमान के झरने का हर घूंट
मेरी जिजीविषा जगा रहा है
अपने आप से आश्वस्त
प्रस्तुत हूँ
संघर्ष के लिए
जीवन के लिए