भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज तुम्हें / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:07, 10 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगीता गुप्ता |संग्रह=इस पार उस प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज तुम्हें
अपने ही केस का
निर्णय सुनाती हूँ
यहाँ वादी
प्रतिवादी
निर्णायक
दर्शक भी मैं हूँ
स्वयं के पक्ष
स्वयं के विरूद्ध
वकील भी मैं हूँ

मेरे ‘मैं‘ को
औरों ने नहीं
मैं ने ही
निर्वासित किया था
स्वयं को स्वयं से
दूर करने का अपराध
मुझ से हुआ है
स्वीकार करती हूँ
पर आज
मैं ने ही
तय किया है कि
मैं ही
‘मैं‘ को
ढूंढ़ निकालूंगी