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गंगा वन्दना / यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

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बुलायौ है जैसें मो पै करि कें कृपा महान
त्यों ही लोक लाजन के काज अनुसरियो

श्याम लता तेरी ब्रज बिपिन बिलासी बनी
ताके फल ऋद्धि-सिद्धि ही ते भौन भरियो

सिंचन तिहारौ है अकिंचन तरैया मातु
ऐसी दृग कोर द्रवि मेरी ओर ठरियो

'प्रीतम' पहार जन्म-जन्म के जुरे हैं जेते
तेते अरि अघन पछार, छार करियो