तुम जियों हमें भी जीने दो / विमल राजस्थानी
तुम लाख जमा कर लो फौजें, भर लो हथियारों से धरती,
यह वीर-प्रसू भारत माता, परवाह नहीं किंचित करती।
तुम भूले-बिसरे हो अतीत, है वर्तमान पर दर्प तुम्हें,
हम भी देखें देते कितना अपना विष गोरे सर्प तुम्हें।
हम कालकूट कंठों में धर, नागों से खेला करते हैं,
हम शंकर-प्रलयंकर वज्रों को, हँसकर झेला करते हैं।
शीशे-सो पत्थर से टकराकर चूर-चूर यदि होना हो,
दुनिया के नक्शे से खुद को यदि तुम्हें मिटाना-खोना हो।
दुस्साहस कर आगे आओ, मेरी हस्ती से टकराओ,
पल भर में राख बना देगी जलती बाती मत उकसाओ।
तुम जियो, हमें भी जीने दो, दो प्यार, नहीं संगीनें दो,
हम भारतवासी मधुपायी, मत लहू मनुज का पीने दो।
इतिहासों के पन्नों को तुम मानो, मत लहू-लुहान करो,
अंजलि फैली है भारत की, इसमें प्रेमिल सद्भाव भरो।