भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चलो चलें मन सपनो के गाँव में / प्रदीप
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:27, 21 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = प्रदीप }} {{KKCatGeet}} <poem> चलो चलें मन सपनो...' के साथ नया पन्ना बनाया)
चलो चलें मन सपनो के गाँव में
काँटों से दूर कहीं फूलों की छाँव में
चलो चलें मन...
हो रहे इशारे रेशमी घटाओं में
चलो चलें मन...
आओ चलें हम एक साथ वहां
दुःख ना जहाँ कोई गम ना जहाँ
आज है निमंत्रण सन सन हवाओं में
चलो चलें मन...
रहना मेरे संग में हर दम
ऐसा ना हो के बिछड़ जायें हम
घूमना है हमको दूर की दिशाओं में
चलो चलें मन सपनो के गाँव में
काँटों से दूर कहीं फूलों की छाँव में
चलो चलें मन...