Last modified on 26 दिसम्बर 2012, at 23:34

साँस के सिक्के / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

Tripurari Kumar Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:34, 26 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा }} {{KKCatKavita}} <Poem...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम साँस के सिक्के उछालती रहना
मैं गले का गुल्लक सम्भाले रक्खूँगा

तुम धमनियों में धीमा लहू बन जाना
मैं टूटी धड़कनों को सीने में चिपकाऊँगा

तुम आँख के आँगन में छुपा लेना मुझे
मैं अपनी उम्र सारी खेलकर गुज़ारूँगा

पीली धूप से जब तुम पकाओगी मौसम
लम्हा तोड़कर मैं लम्बा छाता बुन लूँगा

सूखी बारिश से जब टूटेगा प्यासा पानी
तुम्हारे होंठ के बारे में फिर से सोचूँगा

गीली रेत में जिस तरह बूँद बसती है
तुम्हारे जिस्म में अपना वजूद खोजूँगा

तुम साँस के सिक्के उछालती रहना
मैं गले का गुल्लक सम्भाले रखूँगा