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अहा बुद्धिमानों की बस्ती / महेश अनघ
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अहा बुद्धिमानों की बस्ती
या तो चुप्पी या तकरार -
कोने-कोने भूत बियाने
सारा घर सन्नाटेदार ।
सूचीबद्ध हुई दिनचर्या
मज़बूरी रेखांकित है
चौके से चूल्हे की अनबन
हर भांडा आतंकित है
किसी ख़ास दिन ख़ास वजह से
काग़ज़ पर लिखते हैं प्यार ।
यों तो इस भुतहा बाखर में
कोई आएगा ही क्यों
जिस धन से ख़ुशबू ग़ायब है
उसे चुराएगा ही क्यों
फिर भी ताला है, कुत्ता है
और गोरखा चौकीदार ।
अपना क़द ऊँचा रखने में
झुक कर चलना छूट गया
विज्ञापन से जोड़ा रिश्ता
विज्ञापन से टूट गया
इतनी चीज़ें जुड़ीं कि हम भी
चीज़ों में हो गए शुमार ।