मुर्दों का टीला / शरद कोकास
टीले पर उमड़ आया है
पूरा का पूरा गाँव
गाँव देख रहा है
पुरातत्ववेत्ताओं का तम्बू
कुदाल, फावड़े, रस्सियाँ
निखात से निकली मिट्टी
छलनी से छिटककर गिरते
रंग-बिरंगे मृद्भाण्डों के टुकड़े
मिट्टी की मूर्तियाँ
टेराकोटा
मिट्टी के बैल
हरे पड़ चुके ताँबे के सिक्के
गाँव हैरान है
बाप-दादाओं से सुनी
कहानियाँ क्या झूठी थीं
ज़मीन में दबी
मोहरों से भरी सन्दूकों की
सोने के छल्लों से टकराने वाली
लौह-कुदालों की
खज़ाने पर फन फैलाए
बैठे हुए काले नाग की
सुना तो यही था
उसे स्वर्णयुग कहते थे
चलन में थे सोने-चाँदी के बर्तन
उसके घर के मिट्टी के बर्तनों जैसे हैं
श्रुतियों का विश्वास
बलगम के साथ थूकते हुए
वह याद करता है
अपने उस अँगूठे के निशान को
पिछले चुनाव के दौरान
टीले के नीचे दबे खज़ाने को
गाँववालों के बीच बँटवाने का आश्वासन देकर
ऐसे ही चित्रोंवाले कागज़ पर
मुहर लगवाकर कोई चला गया था
एक बच्चा
ज़ोरों से चीख़ता हुआ
गाँव की ओर भागता है
अँगूठा लगाने वालों जागो ।