भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूर्यास्त / किरण अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:56, 6 जनवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण अग्रवाल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
महानगर के पीछे
सूरज डूब गया
गटर में
काला पड़ गया आसमान
ज्यों इन्सान के चेहरे के पीछे
इन्सानियत ।
</poem