भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सखी, मेरी नींद नसानी हो / मीराबाई

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:48, 10 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} राग आनंद भैरों सखी, मेरी नींद नसानी हो।<br> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग आनंद भैरों


सखी, मेरी नींद नसानी हो।
पिवको पंथ निहारत सिगरी रैण बिहानी हो॥
सखिअन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो।
बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय ऐसी ठानी हो॥
अंग अंग व्याकुल भई मुख पिय पिय बानी हो।
अंतरबेदन बिरह की कोई पीर न जानी हो॥
ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो।
मीरा व्याकुल बिरहणी सुद बुध बिसरानी हो॥

शब्दार्थ :- बेहानी = बीत गई। मानी =अच्छी लगी। वेदन = वेदना, व्यथा। बिसरानी = भूल गई।