मन अब तो जाग / शिवदीन राम जोशी
सांकल ज्ञान की  तौरत है  गजराज यो  धूम  मचावत है |
अहिराज तुरंग कहूँ क्या कहूँ धमकावें तो मारने धावत है |
शिवदीन कहें बस क्या चलि हैं पल एक में आँख घुरावत है |
शुभ संतन का मन धन्य प्रभु नित गोविन्द का गुण गावत है ||
मानत ना मन मेरो कह्यो  समझाय थक्यो अरे बार ही बारा |
थोरी ही बात में,भोग के सुख को, पावत है दुःख अपरम्पारा |
मन चंचल है हठ ठानी रह्यो प्रभु चीन्ह नहीं निज रूप पियारा |
शिवदीन सुने न हरी चरचा फिर कैसे तिरे भव सिन्धु की धारा ||
चेत तो चेत  चितार मना  यह काम  न  आवे   कोऊ  सुत  दारा |
शिवदीन फंस्यो जिनके फंद में वही आन चिता पे करे मुख कारा |
प्रीत  नहीं  कोई  रीत  नहीं  सब  देख  के  प्रेत  कहे  परिवारा |
प्रीतम  तो  परमेश्वर  है,  मन  तू  जग  से करता न किनारा  ||
 
	
	

