डूबेगा वह देश / विमल राजस्थानी
डूबेगा वह देश जहाँ धन की चौखट पर
सरस्वती के वरदपुत्र मस्तक धरते हैं
धक्के खाते है पंडित, कवि, लेखक, ज्ञानी
वज्रमूर्ख लक्ष्मी-वाहन केसर चलते हैं
क्यों न मचे कोहराम, देश क्यों मरे न भूखा
मुट्ठी भर दानों के हित क्यों बढ़े न झोली
थैलीशाहों के वश में टेंटूआ देश का
बैलों को मतपत्र खिलाती जनता भोली
गद्दी पर आसीन, तोंद का तना गुबारा
तिरछी टोपी पर दीपित सौभाग्य सितारा
पूँजी तो महफूज, ब्याज डालर में ढलता
बेटी स्विटजरलैण्ड, पुत्र पेरिस में पलता
बीटल जैसे बाल, चाल हाॅलीवुड कट है
पुत्रवधु मर्लिन मनरो-सी नटखट हैं।
ट्विस्ट आज ललना नाचे अधनंगी होकर
रूज, लिपिस्टिक, स्नो का शशिमुख पर घूँघट है
सिंहासन के लिए मची है आपा-धापी
जनता के दुख-दर्द ठहाकों में उड़ जाते
साबरमती बनी जन-जन की छल-छल आँखें
बापू के बेटे आँसू से नमक बनाते
चारों ओर अनैतिकता का नंगा नर्तन
चैतरफा है अनाचार की काली छाया
घर-घर में विप्लव की भट्ठी सुलग रही है
जन-जन का मन ‘कुछ’ कर देने को अकुलाया
राम, कृष्ण, गौतम, गाँधी की भूमि धन्य है
इस भूतल पर तुझ-सा नत शिर कौन अन्य है
पेट-पीठ मिल एक हुए, भर्रायी बोली
भीख माँगती है भामा शाहों की टोली
अँगड़ाई ले रही देश की बँधी जवानी
खौल रहा है रक्त, नयन का सुखा पानी
अब भी चेतो वक्त बहुत थोड़ा है बाकी
पांचजन्य बज रहा, टंकरित क्रुद्ध पिनाकी