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सूर्य-सा आता है कोई / विमल राजस्थानी

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तिमिर का वक्ष किरण से फाड़
केशरी-सा बेखौफ दहाड़
प्रगति के धनु की कर टंकार
दिशाओं में भरता हुंकार
सुर्य-सा आता है कोई
अमृत बरसाता है कोई

नाम जिसका है ‘भारतवर्ष’
चरण पर लोट रहा उत्कर्ष
तिलक-गाँधी का प्यारा देश
बाँटता अमर शांति-संदेश
प्रेम सरसाता है कोई
ऋचा-उद्गाता है कोई

रहा जो सदा विश्व-सिरमौर
धरा का सारा दर्द बटोर
लिया अपने दामन में बाँध
लुटाता मानव-प्रेम अगाध
तपस्वी आता है कोई
राम-धुन गाता है कोई

जिसे बल का न तनिक अभिमान
बढ़ रहा है जो सीना तान
जगत में पूजित जो सर्वत्र
व्योम का सर्वोत्तम नक्षत्र
सुर्य-सा आता है कोई
विभा छिटकाता है कोई

उँगलियों पर भूगोल उछाल
तेवरों में खगोल दे ताल
तिरंगे के सम्मुख नत भाल
मुक्ति के आज ‘साठवें’ साल
ध्वज फहराता है कोई
धरा पर छाता है कोई