भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमन है इश्क़ मस्ताना / नीलाभ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:14, 14 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलाभ |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> (एम० के ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(एम० के लिए)

इन दिनों मैं अकसर
उस मुस्कान को याद करता हूँ
उस रहस्य-भरी मुस्कान को
जिसमें पिरोये होते थे असंख्य भाव
छुपे रहते थे अनगिनत न्योते

होंटों से शुरू हो कर
जो मुस्कान
आँखों तक आती थी
और देखने वालों को ताज़ादम कर जाती थी
दे जाती थी संख्यातीत सँदेसे

कलाकार चित्रित करते थे उस मुस्कान को
अपनी कृतियों में
कवि उसके गीत गाते थे
गायक उसके गिर्द अपने राग सजाते थे

लेकिन मरते थे सिर्फ़ आशिक़ उस मुस्कान पर
उस रहस्य-भरी मन्द स्मिति पर
केवल प्रेमीजन सर्वस्व लुटाते थे