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कुछ पूछो मत अब मुझ से / ओसिप मंदेलश्ताम
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कुछ पूछो मत
अब मुझ से
तुम जानती हो
कि प्यार का कोई
सबब नहीं होता
अब कुछ भी
मैं स्वीकारूँ क्यों भला
जब तुम
पहले ही तय कर चुकी हो
भविष्य मेरा
लाओ,अपना हाथ दो मुझे
और बतलाओ
प्रेम क्या है ?
नृत्य करता सर्प !
उसकी व्यापकता का रहस्य क्या है
परस्परिक लगाव!
किसी चुम्बक की तरह ही क्या ?
इस नृत्य करते
बेचैन
सर्प को रोकने का
साहस नहीं है मुझ में
इसीलिए घूर-घूर कर देखता हूँ मैं
लड़कियों के सुर्ख़ गालों की चमक
(रचनाकाल : 7 अगस्त, 1911)