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हम और तुम-3 / बोधिसत्व
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जैसे अंधकार ढाल बनता है अंधकार की
जैसे प्रकाश मुक्त करता है प्रकाश को
वैसे ही हमने किसी क्षण अंधकार की तरह
ढाल बन कर ढँका एक-दूसरे को
और किसी क्षण प्रकाश बन कर एक-दूसरे मुक्त किया ।
इसी सब में
हमने जाना कि पत्ते के गिरने से पेड़ ही नहीं
धरती भी विचलित होती है
हमने पाया कि छोटी मेघ-बूँद भी कच्चे घड़े पर चिह्न छोड़ जाती है
हमने देखा कि तप्त तवा ही सेंक सकता है रोटी
वैसे ही
वैसे ही
हमने एक-दूसरे के तन पर
अपने चिह्न अंकित किए
सेंक कर सज्जित किया एक-दूसरे को
जब-जब मन तरु के पत्ते गिरे तो हम बिलखते रहे
सोचते रहे उस पत्ते के बिछुड़ने को ।