भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मज़ेदार / आन्ना कमिएन्स्का
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:03, 1 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=आन्ना कमिएन्स्का |संग्रह= }} [[Categor...' के साथ नया पन्ना बनाया)
|
कैसा होता है आदमियों जैसा होना
मुझसे चिड़िया ने पूछा
मैं ख़ुद नहीं जानती
यह अनंत तक पहुँचते हुए भी
अपनी त्वचा के भीतर क़ैद रहना है
अमरता को छूते हुए
समय के अपने टुकड़े का बंदी होना
हताशापूर्ण ढंग से अनिश्चित होना
और असहायपूर्ण ढंग से उम्मीदभरा
पाले की सुई होना
और होना मुठ्ठीभर गर्मी
साँस लेना हवा में
और निश्शब्द घुटते जाना
राख से बने हुए एक घोंसले के साथ
लपटों में जलना
रोटी खाना
और भूख को भरते जाना
आदमियों जैसा होना बिना प्यार के मरना
और मौत के ज़रिये प्यार करना होता है
बड़ी मज़ेदार बात है
चिड़िया ने कहा
और सहज उड़ गई ऊपर आकाश में