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नई सृष्टि का ताल / संज्ञा सिंह

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राग की तरह धारण करना चाहती हूँ तुमको मैं
ग्रहण करना चाहती हूँ पराग की तरह
खिले हुए फूल से उठा कर

सूरज की शक़्ल में देखना चाहती हूँ अपना अनुराग
कुँवारेपन का सुहाग एक अनन्त नीले विस्तार में
तब्दील कर देना चाहती हूँ मैं
हो जाना चाहती हूँ एक कभी न बुझने वाली आग
तुम्हारे लिए

इतनी छोटी उम्र में मेरा यूँ दिखना
तुम्हारी निग़ाहों का कमल है
ब्रम्हा की नई सृष्टि का ताल है शायद यह
रंग-रंग होता हुआ सुगंधमय शाश्‍वत…