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नीम के दो पेड़ / संज्ञा सिंह

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द्वार का खालीपन भरते
नीम के दो पेड़
ख़ूबसूरत होते जा रहे हैं
अपनी-अपनी छाया के साथ

बराबर चल रही है
एक-दूसरे से बड़ा हो जाने की कोशिश
बरकरार है एक अघोषित प्रतियोगिता दिन-रात

अपनी सुन्दरता और हरियाली में समान
समान अपनी लम्बाई और फैलाव में
मुश्किल हो गई है इनकी छटाई
कटाई मुश्किल हो गई है इनकी हर किसी के लिए

ज़मीन को ढकने और आसमान बनने की कोशिश में
मिलते जा रहे हैं दोनों एक दूसरे से
बाँहों में डालते हुए बाँहें
घर की छत से ऊपर
ऊपर अगल-बगल के तमाम पेड़ों से
कुएँ की तरफ बढ़ रहे हैं दोनों
अपनी झूमती टहनियों को देखने के लिए
पानी में

कल तक पतझड़ से निपटते हुए
खड़े थे दोनों बनकर ठूँठ
पत्तियों से पाटते हुए
अपने नीचे की ज़मीन पूरी की पूरी

आज बसंत की शुरुआत पर
वहरती हुई अपनी नन्हीं पत्तियों के साथ
संसार का स्वागत कर रहे हैं
भरते हुए निरंतर द्वार का खालीपन