हम यंत्र हैं / दिनकर कुमार
हम यंत्र हैं
विचरण करते हैं यंत्र-जगत में
घड़ी की सुइयों में बँधी हुई है हमारी साँसें
अनुशासन है हमारे जीवन का मंत्र
प्रतिदिन हम जागते हैं घड़ी देखकर
बदहवास की तरह शुरू करते हैं दिनचर्या
आईने में गौर से देख भी नहीं पाते ठीक से ख़ुद को
तेज़ी से खाते हैं नाश्ता, पीते हैं चाय
दौड़ते हुए पहुँचते हैं बस-अड्डे तक
यंत्रों से खचाखच भरी हुई बस में
हम भी लटक जाते हैं किसी तरह
बदहवासी की हालत में ही हम दाख़िल
होते हैं अपने-अपने दफ़्तर में
अपनी-अपनी धमनियों से रक्त निचोड़कर
शाम के वक़्त हम लौट जाते हैं अपने-अपने
रैन बसेरे में
घड़ी की सुइयों को देखकर पीते हैं चाय
पढ़ते हैं अख़बार, देखते हैं टी०वी०
घड़ी की सुइयाँ जब कहती है हम बत्ती
बुझाकर सो जाते हैं
हम यंत्र हैं
विचरण करते हैं यंत्र-जगत में
भावनाओं को हम पहचानते नहीं
संवेदनाओं को हम जानते नहीं ।