भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये घातों पर घातें देखो / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
Kavita Kosh से
Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:50, 2 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |अंगारों पर ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ये घातों पर घातें देखो
क़िस्मत की सौगातें देखो
दिन अँधियारों में डूबे हैं
उजली उजली रातें देखो
फ़सलों के पक जाने पर ये
बेमौसम बरसातें देखो
धरती को जन्नत कर देंगे
मक्कारों की बातें देखो
पीठों पर कोड़े थमते ही
पेटों पर ये लातें देखो
तनहाई हँस कर कहती है
यादों की बारातें देखो
सौ सौ ख़्वाबों को पाले हैं
आँखों की औक़ातें देखो
हमको सब इंसान बराबर
तुम ही जातें-पाँतें देखो
ग़ज़लें, मुक्तक, गीत रूबाई
दर्दों की सौगातें देखो