किरासन के बारे में / दिनकर कुमार
रात भर दौड़ता रहा अश्वत्थामा
कँक्रीट के जंगल में इस छोर से उस छोर तक
किरासन की तलाश में
खाली पीपा हाथ में लटकाए
अश्वत्थामा की अँतड़ियाँ भूख से ऐंठ रही थी
देवलोक में भी किरासन नहीं था
पाताल-लोक में भी किरासन नहीं था
मर्त्य-लोक में भी किरासन नहीं था
ब्रह्माण्ड घूमकर भी एक बूँद किरासन
तलाश नहीं पाया अश्वत्थामा
झोपड़ी में उपेक्षित पड़े थे अनाज
बिलख रहे थे छोटे-छोटे जीव
जो नहीं जानते थे कुछ भी
तेल कुएँ के बारे में
मुक्त अर्थनीति के बारे
बाज़ार के गणित के बारे में
अश्वत्थामा की जेब में रुपए थे
पर दुकानों में किरासन नहीं था
नुक्कड़ की औरत के पास भी
किरासन नहीं था जिसके पति को
पुलिस पकड़कर ले गई थी
जिसकी आँखें रोते-रोते सूज गई थी
जिसकी आवाज फँस गई थी गले में
किरासन के बारे में देवताओं का
बयान भी अख़बार के भीतरी पन्ने
पर छपा कि समुद्र मंथन से
एक बूँद भी किरासन हासिल नहीं हुआ
किरासन के लिए सुर-असुर सँग्राम
भी नहीं हुआ — न ही देवलोक में
छिपाकर रखा गया एक बूँद किरासन
किरासन के बारे में कोई चर्चा नहीं थी
संसद में मयखाने में कोठे पर कोई भी
किरासन के बारे में कुछ कहने के लिए
तैयार नहीं था कि किरासन के बगैर
कैसे जिएगा अश्वत्थामा कैसे सुलगेगा स्टोव
जबकि कोयला और लकड़ी और रसोई-गैस
का वैकल्पिक प्रबन्ध है फिर किसलिए
किरासन को मुद्दा बनाया जा रहा है
विपक्ष ने कहा किरासन आम-आदमी के
जीने के लिए ज़रूरी चीज़ है
पक्ष ने कहा कि आम-आदमी के लिए
भाषण-आश्वासन का पर्याप्त इन्तज़ाम है
और काग़ज़ पर किरासन की नियमित
आपूर्ति की गई है विश्वास न हो तो
तेल निगम से पूछ लें
अश्वत्थामा जिससे भी मिला सबसे पहले
किरासन के बारे में पूछा
सभी ने उसे ग़ौर से देखा और
किसी ने भी नहीं बताया किरासन का पता
अश्वत्थामा को हर राहगीर एक खाली पीपा
नज़र आया जो महीनों से या वर्षों से
खाली पड़ा है सूख चुका है
अश्वत्थामा को कालाबाज़ार का सुराग मिला
वह मीना बाज़ार, कपड़ा बाज़ार, बर्तन बाज़ार को
पार कर भी पहुँच नहीं पाया वहाँ जहाँ
सँभ्रान्त चेहरे मौज़ूद थे जो किसी आपूर्ति-मंत्री
किसी आपूर्ति-विभाग के अफ़सर, किसी दलाल
किसी पेट्रोल पम्प के मालिक, किसी सड़कछाप गुण्डे
के चेहरे थे जो किरासन से नहाए हुए थे
दौड़ते-दौड़ते थक गया अश्वत्थामा
पीपा साथ लिए सड़क किनारे लुढ़क पड़ा अश्वत्थामा
खाली पीपे को पकड़कर रोता रहा अश्वत्थामा
किरासन की याद में आँसू बहाते हुए
अश्वत्थामा ने थूका राष्ट्र के माथे पर
अश्वत्थामा ने थूका मुक्त-अर्थनीति पर
अश्वत्थामा ने थूका सँभ्रान्त चेहरों पर
किरासन का सपना देखने के लिए
गहरी नींद में सो गया अश्वत्थामा ।