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हरियाली / दिनकर कुमार
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हरियाली ने आमन्त्रित किया
समा जाओ
मुक्त हो जाओ
घृणा से
होड़ से
विकृतियों और आडम्बर से
हरियाली ने मेरे चेहरे का पीलापन
यत्न से साफ़ किया
जैसे ज़ख़्मों पर रख दे
कोई मरहम
जैसे लम्बे सफ़र के दौरान कोई
तर कर दे गले को
शीतल जल से
बुदबुदाते रहे प्रार्थना के बोल
कतार में खड़े वृक्ष
और नाविक के गीत सुनकर
विह्वल होती रही नदियाँ
मिट्टी ने पैरों को चूमा
माँ की तरह
फफोले
ग़ायब हो गए
हरियाली के नशे में
डूबा हुआ मैं
कंक्रीट के जंगल का मुहावरा
भूल गया हूँ ।