भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिट्टी के प्यार में / दिनकर कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:19, 7 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=उसका रिश्ता ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिट्टी के प्यारे में
तिल-तिलकर जलता है जीवन
बारूद की गन्ध से
बौराती है हवा

मतपेटियों से बाहर
निकलता है
अपाहिज भविष्य
नपुंसक वर्तमान का सिर
घुटनों के बीच झुका रहता है

अध्यादेशों से
सुलगते नहीं चूल्हे
अधिनियमों से
बुझती नहीं भूख

संविधान के सपने
देखते हुए
पीढ़ियाँ खप जाती हैं
संविधान के आदर्श
महलों में
मुखौटे पहनते हैं

मिट्टी के प्यार में
मिट्टी के पुतले
सोने जैसे जीवन को
मिट्टी में मिलाने से
नहीं हिचकते ।