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चाँदनी रात में नौका विहार / रामकृष्ण दीक्षित 'विश्व'

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चाँदनी बिखेरती रात जगमगा रही
और हमें संग लिए नाव चली जा रही

आसमान के तले याद के दिए जले
छपक छपक धार पर नाव शान से चले
इधर झूमती चले उधर झूमती चले
फिर नई अदाओं से लहर चूमती चले
संग हम जवान है आग है उफान है
धुलिमय जहाँ के खुशनुमा विहान है
कोई गीत गा चला ढोलकी गूंजा चला
कोई बासुरी बजा दर्दे दिल सुना चला
चाँदनी बिखेरती रात जगमगा रही
और हमें संग लिए नाव चली जा रही

चाँद झलमला रहा प्राण मन जगा रहा
चित्र प्यार प्यार के रुपहले सजा रहा
किरण मंद मंद है पवन बंद बंद है
चमक दमक से घिरा गगन नजरबन्द है
सो रही पहाड़िया बंद कर किवड़िया
नींद के खुमार में डूब चली झाडियां
रूप धन बिखेरती रात जगमगा रही
और हमें संग लिए नाव चली जा रही


सिन्धु की पुकार पर मिलन का उभार भर
नर्मदा उमड़ रही सोलहो सिंगार कर
संगमरमरी महल श्वेत उर्वशी महल
आज इस बहार पर चुप खड़े सभी दहल
किन्तु हम लुटे हुए कुछ जले बुझे हुए
बांधते हुए समां बह चले मजे मजे
अजब रंग बिखेरती रात जगमगा रही
और हमें संग लिए नाव चली जा रही

एक कहानी लिए एक रवानी लिए
नदी युगों की चली अमर जवानी लिए
पत्थरो से भरी हुई जंगलो से घिरी हुई
राह जल प्रवाह की की घाटियों भरी हुई
इस तरह तीर से मचल मचल नीर से
जिन्दगी बिखेरती रात जगमगा रही
और हमें संग लिए नाव चली जा रही