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नीचे पान की दुकान, ऊपर बन्नी का मकान / हिन्दी लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

नीचे पान की दुकान, ऊपर बन्नी का मकान
बोलो बोलो मेरी जान, किराया कितना

मैंने खाना बनाया तुम्हारे लिए -२
सब खा गए मेहमान, जिनकी जान न पहचान
बोलो बोलो मेरी जान, किराया कितना

नीचे पान की दुकान, ऊपर बन्नी का मकान
बोलो बोलो मेरी जान, किराया कितना

मैंने पानी मँगाया तुम्हारे लिए -२
सब पी गए मेहमान, जिनकी जान न पहचान
बोलो बोलो मेरी जान किराया कितना

नीचे पान की दुकान, ऊपर बन्नी का मकान
बोलो बोलो मेरी जान, किराया कितना

मैंने बीड़े लगाए तुम्हारे लिए -२
सब खा गए मेहमान, जिनकी जान न पहचान
बोलो बोलो मेरी जान किराया कितना

नीचे पान की दुकान, ऊपर बन्नी का मकान
बोलो बोलो मेरी जान, किराया कितना

मैंने सेज बिछाया तुम्हारे लिए -२
सब सो गए मेहमान, जिनकी जान न पहचान
बोलो बोलो मेरी जान किराया कितना

नीचे पान की दुकान, ऊपर बन्नी का मकान
बोलो बोलो मेरी जान, किराया कितना