भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोको मत टोको मत / गुलज़ार
Kavita Kosh से
Umesh Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:28, 12 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> रोक...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रोको मत टोको मत
सोचने दो इन्हें सोचने दो
रोको मत टोको मत
होए टोको मत इन्हें सोचने दो
मुश्किलों के हल खोजने दो
रोको मत टोको मत
निकलने तो दो आसमां से जुड़ेंगे
अरे अंडे के अन्दर ही कैसे उड़ेंगे यार
निकालने दो पाँव जुराबें बहुत हैं
किताबों के बाहर किताबें बहुत हैं
बच्चों के एक विज्ञापन के लिए लिखा जिंगल.