Last modified on 15 अक्टूबर 2007, at 10:40

अपेक्षाएँ / बद्रीनारायण

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:40, 15 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बद्रीनारायण |संग्रह= }} कई अपेक्षाएँ थीं और कई बातें हो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कई अपेक्षाएँ थीं और कई बातें होनी थीं

एक रात के गर्भ में सुबह को होना था

एक औरत के पेट से दुनिया बदलने का भविष्य लिए

एक बालक को जन्म लेना था

एक चिड़िया में जगनी थी बड़ी उड़ान की महत्त्वाकांक्षाएँ


एक पत्थर में न झुकने वाले प्रतिरोध को और बलवती होना था

नदी के पानी को कुछ और जिद्दी होना था

खेतों में पकते अनाज को समाज के सबसे अन्तिम आदमी तक

पहुँचाने का सपना देखना था


पर कुछ नहीं हुआ

रात के गर्भ में सुबह के होने का भ्रम हुआ

औरत के पेट से वैसा बालक पैदा न हुआ

न जन्मी चिड़िया के भीतर वैसी महत्त्वाकांक्षाएँ


न पत्थर में उस कोटि का प्रतिरोध पनप सका

नदी के पानी में जिद्द तो कहीं दिखी ही नहीं


खेत में पकते अनाजों का

बीच में ही टूट गया सपना

अब क्या रह गया अपना ।