भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पारदर्शी नील जल में / नामवर सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:42, 15 अप्रैल 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पारदर्शी नील जल में सिहरते शैवाल
चाँद था, हम थे, हिला तुमने दिया भर ताल
क्या पता था, किन्तु, प्यासे को मिलेंगे आज
दूर ओठों से, दृगों में संपुटित दो नाल ।