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आज तुम्हारा जन्मदिवस / नामवर सिंह

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आज तुम्हारा जन्मदिवस, यूँ ही यह संध्या
भी चली गई, किंतु अभागा मैं न जा सका
समुख तुम्हारे और नदी तट भटका-भटका
कभी देखता हाथ कभी लेखनी अबन्ध्या ।

पार हाट, शायद मेल; रंग-रंग गुब्बारे ।
उठते लघु-लघु हाथ,सीटियाँ; शिशु सजे-धजे
मचल रहे... सोचूँ कि अचानक दूर छ: बजे ।
पथ, इमली में भरा व्योम,आ बैठे तारे

'सेवा उपवन', पुष्पमित्र गंधवह आ लगा
मस्तक कंकड़ भरा किसी ने ज्यों हिला दिया ।
हर सुंदर को देख सोचता क्यों मिला हिया
यदि उससे वंचित रह जाता तू...?

क्षमा मत करो वत्स, आ गया दिन ही ऐसा
आँख खोलती कलियाँ भी कहती हैं पैसा।