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एक चिड़िया / श्रीप्रकाश मिश्र
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एक चिड़िया
आइने पर निरन्तर चोंच मार रही है
एक दुश्मन पर निरन्तर आघात कर रही है
जो शीशे के उस पार है
नहीं
अपने आप से लड़ रही है
कि अपना प्रतिबिम्ब ही
अपना सबसे बड़ा दुश्मन होता है
ना रे ना
अपने ही जैसे एक पंछी को
क़ैद पा रही है
और उसे मुक्त कराने के लिए
निरन्तर लड़ रही है
उहुंक
वह जानती है
क़ैद पक्षी वह खुद है
एक शीशे की क़ैद से
मुक्त होने के लिए
वह तड़प-तड़प कर चोंच मार रही है