भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक स्त्री / श्रीप्रकाश मिश्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 19 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रकाश मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक स्त्री
सिर के बल खड़ी है
सृजन क्रिया में
कोई हज़ार वर्षों से

रेत की तरह उड़ा ले गई है हवा
उसके वक्ष को
भुजाओं को तोड़ दिया है
किसी आततायी के मुग्दर ने
नितम्ब की संधियों में
चीटियों ने बना लिया है अपना मकान
पाँवों पर दिख रहे हैं
पानी के दाग

एक स्त्री
हज़ार वर्षों से सूख रही है
सिर के बल
और उसके सिर में
दर्द भी नहीं हो रहा है

उसके चेहरे पर दिपदिपाते
सृजन-तप को देखकर लगता है
कि यूँ ही पत्थर नहीं बोलने लगता है
कविता