भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जायगो हऊ जाणी रे मन तूक / निमाड़ी
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:32, 19 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=निमाड़ी }...' के साथ नया पन्ना बनाया)
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
जायगो हऊ जाणी रे मन तूक
(१) पाँच तत्व को पींजरो बणायो,
जामे बस एक प्राणी
लोभ लालूच की लपट चली है
जायगो बिन पाणी...
रे मन तू...
(२) भुखीयाँ के कारण भोजन प्यारा,
प्यासा के कारण पाणी
ठंड का कारण अग्नी हो प्यारी
नही मिल्यो गुरु ज्ञानी...
रे मन तू...
(३) राज करन्ता राजा भी जायगा,
रुप निखरती राणी
वेद पड़न्ता पंडित जायेगा
और सकल अभिमानी...
रे मन तू...
(४) चन्दा भी जायगा सुरज भी जायगा,
जाय पवन और पाणी
दास कबीर जी की भक्ति भी जायगा
जोत म जोत समाणी...
रे मन तू...